अनपरा में डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर हुई छठ पर्व की शुरुआत,जाने क्या है छठ पूजा की प्रचलित कहानियां

सोनभद्र/अनपरा। संतान की लंबी आयु एवं परिवार की उन्नति के लिए आज गुरुवार को डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर हजारों व्रतियों ने छठी मइया का पूजन किया। सूर्य उपासना के इस महापर्व के लिए अनपरा नगर पंचायत के विभिन्न तालाबों एवं जलाशयों के किनारे हजारों श्रद्धालु जुटे। यहां व्रतियों ने डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर छठी माता की पूजा की साथ ही ईश्वर से सुख-शांति की कामना की।
दीपावली के छठवें दिन से शुरू होने वाला यह महापर्व चार दिनों तक चलता है। छठ पर्व कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को मनाया जाता हैं।
छठ पूजा से जुडी एक कहानी राजा प्रियंवद को लेकर है। कहते हैं राजा प्रियवंद को कोई संतान नहीं थी तब महर्षि कश्यप ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इससे उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई लेकिन वो पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ।प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे।उसी वक्त मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और उन्होंने राजा प्रियंवद से कहा कि वो सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं और इसी कारण वो षष्ठी कहलातीं हैं। उन्होंने राजा प्रियंवद से उनकी पूजा करने और दूसरों को पूजा के लिए प्रेरित करने को कहा। जिसके बाद राजा प्रियंवद ने पुत्र इच्छा के कारण देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। तभी से छठ पूजा पूत्रों की दीर्घ आयु के लिए मनायी जाती है। छठ पूजा से जुड़ी एक कहानी प्रचलित है कि विजयादशमी के दिन लंकापति रावण के वध के बाद दिवाली के दिन भगवान राम अयोध्या पहुंचे।रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए भगवान राम ने ऋषि-मुनियों की सलाह से राजसूर्य यज्ञ किया। इस यज्ञ के लिए अयोध्या में मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया गया। मुग्दल ऋषि ने मां सीता को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने की सलाह दी। इसके बाद मां सीता मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी। एक मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी,जिसकी शुरुआत सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वो रोज घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने,आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है। छठ पर्व के बारे में एक कथा है कि जब पांडव अपना सारा राज पाठ जुए में हार गए तब दौपदी ने छठ व्रत रखा था। इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को अपना राजपाठ वापस मिल गया था। लोक परंपरा के मुताबिक सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है,इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई।

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