मिर्जापुर/शक्तेषगढ़। विश्व गुरु विश्व गौरव से सम्मानित यथार्थ गीता के प्रणेता तत्व द्रष्टा महापुरुष अनन्त विभूषित परमहंस स्वामी श्री अड़गड़ानंद जी महाराज का दर्शन करने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने मिर्जापुर चुनार स्थित शक्तेषगढ़ आश्रम में स्वामी जी के पास पहुंचे। मोहन भागवत दिन में लगभग 11:30 पर शक्तेषगढ़ आश्रम पहुंच चुके थे। वे आश्रम में स्थित धूना गोशाला सत्संग हाल यथार्थ गीता भवन लान पार्क आदि को टहलकर देखे। स्वामी जी से मोहन भागवत की लगभग तीस मिनट तक वार्ता हुई हिंदू कौन है ? धर्म के वास्तविक स्वरूप आर्य सनातन यथार्थ गीता वास्तविक भाष्य पर वृहद चर्चा हुई। स्वामी जी ने बताया कि संसार धर्म के नाम पर भ्रमित है। श्री स्वामी जी ने बताया कि वास्तविक धर्म को समझने के लिए गीतोक्त विधि का आचरण आवश्यक है संसार में जो गीतोक्त विधि का आचरण करता है तो वह सच्चा साधक हिंदू है चाहे वह अपने को किसी देश, सम्प्रदाय स्थिति अथवा परिस्थिति का मानता हो। श्री स्वामी जी ने बताया कि यह गीता गोपनीय से भी अति गोपनीय शास्त्र है जो सम्प्रदाय और मजहब से ऊपर है। श्री स्वामी जी ने सनातन विषय पर बोले कि आत्मा ही सनातन है आत्मा परमात्मा ईश्वर सद्गुरु सब पर्यायवाची शब्द है।अच्छेद्योअ्यमदाह्योअ्यमक्लेद्योअ्शोष्य एव च।
नित्य: सर्वगत: स्थआणउरचलओअ्यं सनातन:!
अंतःकरण में सदा विद्यमान होने से आत्मा सबमें रहते हुए सबसे परे हैं इसलिए परमात्मा स्वर के निरोध काल में विदित होने से ईश्वर ऐसे हजारों नाम हो सकतें हैं। इस आत्मा के प्रति जो श्रद्धावान है वही सनातनधर्मी है।श्री स्वामी जी ने बताया कि गीता आर्य संहिता है। आर्य एक व्रत है। जो अस्तित्व मात्र एक परमात्मा उस अविनाशी का उपासक है आर्य है। वरुण कुबेर अग्नि इन्द्र प्रथम आर्य थे। जो उस अस्तित्व के प्रति आस्थावान हैं आर्य है। उसे प्राप्त करने की विधि का आचरण आर्यावर्त है इस व्रत में क्रमशः उत्कर्ष करते हुए व्यक्ति जब परमात्मा का दर्शन उसका स्पर्श और उसमें स्थिति पा जाता है तो वह आर्यत्वप्राप्त है। स्वामी जी ने बताया कि यथार्थ गीता मैने भगवान की प्रेरणा से लिखी है इसे जीवन में ढालकर आप सभी सुख शांति व समृद्धि के साथ सदा रहने वाला जीवन और धाम प्राप्त कर सकते हैं। स्वामी जी ने बताया कि हर प्रकार के धर्म विषयक शंका का समाधान यथार्थ गीता है एक परमात्मा का उपदेश विश्व के जिन जिन महापुरुषों ने दिया वे सभी गीता के ही संदेशवाहक है क्योंकि सर्वशक्तिमान एक परमात्मा का शोध उन सबसे बहुत पहले गीता में है। स्वामी जी ने कहा कि सद्गुरु की कृपा से परमात्मा की हृदय में जागृति परमात्मा से बातें करना उनका दर्शन स्पर्श और स्थिति का क्रमबद्ध साधना गीता में है और कहीं नहीं है। श्री स्वामी जी ने कहा कि यथार्थ गीता को चार बार आवृत्ति करने पर गीतोक्त विधि के संबंध में जानकारी हो जायेगी। यथार्थ गीता पूर्णरूपेण मजहब मुक्त है