स्वाभिमान एवं शौर्य की प्रतीक थी वीरांगना महारानी दुर्गावती-संजय यादव


गौरव दिवस के रूप में मनाया गया वीरांगना महारानी दुर्गावती की बलिदान दिवस
सोनभद्र/घोरावल।आदिवासी वीरांगना महारानी दुर्गावती सेवा समिति के नेतत्व में दुरावल कलां में दुरावल स्मारक पर धुमधाम से वीरांगना महारानी दुर्गावती की 459वीं बलिदान दिवस मूल निवासी गौरव दिवस के रूप में मनाया गया।
विगत कई वर्षो की भाँति इस वर्ष भी 24 जून शनिवार को वीरांगना महारानी दुर्गावती 459वी बलिदान दिवस मूल निवासी गौरव महा सम्मेलन स्थल वीरांगना धाम दुरावल कलॉ में 25वी रजत समारोह की रूप में मनाया गया जिसमें मुख्य अतिथि पकौड़ी लाल कोल सांसद रार्बट्सगंज,विशिष्ठ महाराजा ब्रह्म शाह राजपुर स्टेट,राजकुमारी दीक्षा जी राजपुर स्टेट,परमेश्वर दयाल पूर्व विधायक,राम निहोर यादव जिला अध्यक्ष सपा,संजय यादव पूर्व ब्लाक प्रमुख म्योरपुर,अनीता कोल, श्याम बिहारी यादव, त्रिवेणी खरवार,राम नगीना गोड,मुन्ना घांगर,राम अधार कोल,लाले चौधरी,मेवा लाल प्रजापति,अंगद मौर्या,
आशीष खाम्बे,भोजपुरी अभिनेता,प्रमीला जयसवाल,सूरज मौर्या, सूरज मिश्र, ई०पी०सी० यादव जी,ओमप्रकाश, वासुदेव कोल,अशोक मिश्र,सुनील जयसवाल,जितेन्द्र कुमार गोड, राजेन्द्र गोंड,राम प्यारे पटेल,श्याम सुन्दर गोंड, बी०एन०सिंह, संजय कुमार रत्न,श्रीमती रेनू राय,श्रीमती प्रियंका,श्रीमती ज्ञानमति तथा सुदूर ग्रामीण अंचलों से समाज के आये महिला, पुरुष एवं नन्हे-मुन्ने बच्चों की गरिमामयी उपस्थिति रही। कार्यक्रम की अध्यक्षता राजेन्द्र प्रसाद मरपच्ची जिला अध्यक्ष तथा संचालन राजेश कुमार गोंड संयोजक व प्रदेश अध्यक्ष अखिल भारतवर्षीय गोंड महासभा,उ०प्र० के द्वारा की गयी। कार्यक्रम का शुभारम्भ गोंडी धर्म संस्कृति के तहत बडा देव की पूजा गोगो की गयी। वीरांगना महारानी दुर्गावती स्मारक पर समस्त अतिथियों द्वारा श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए मल्यापर्ण कर नमन किया गया। मुख्य अतिथियों एवं विशष्ठ अतिथियों द्वारा वीरांगना महारानी के शौर्य साहस, वीरता तथा बलिदान पर चित्रण करते हुए समाज की सांस्कृति समाजिक शैक्षिक व आर्थिक विकास कैसे हो इस पर अपने-अपने विचार व्यक्त किया गया। आए हुए अतिथियो ने आपने सम्बोधन में कहा कि भारत का इतिहास महिला वीरांगनाओं शौर्य,शक्ति,बलिदान, स्वाभिमान एवं प्रभावी शासन व्यवस्था के लिये दुनिया में चर्चित है। इन्होंने संस्कृति,समाज और सभ्यता को नया मोड़ दिया है। अपने युद्ध कौशल एवं अनूठी शासन व्यवस्था से न केवल भारत के अस्तित्व एवं अस्मिता की रक्षा की बल्कि अपने कर्म, व्यवहार,सूझबूझ,स्वतंत्र सोच और बलिदान से विश्व में आदर्श प्रस्तुत किया है। भारतीय इतिहास ऐसी महिला वीरांगनाओं की गाथाओं से भरा हैं।लेकिन उनमें से केवल रानी दुर्गावती ऐसी विलक्षण,साहसी एवं कर्मयोद्धा साम्राज्ञी हैं। उनके बलिदान, स्वाभिमान और वीरता के साथ गोंडवाना के एक कुशल शासक के तौर पर याद किया जाता है। 24 जून को देश उनका बलिदान दिवस मनाता है। जब उन्होंने मुगलों के आगे हार स्वीकार नहीं करते हुए आखिरी दम तक मुगल सेना का सामना किया और उसकी हसरतों को कभी पूरा नहीं होने दिया। महारानी दुर्गावती ने 1564 में मुगल सम्राट अकबर के सेनापति आसफ़ खान से लड़कर युद्ध-भूमि में अपनी जान गंवाने से पहले पंद्रह वर्षों तक कुशल एवं प्रभावी शासन किया था। रानी दुर्गावती का जन्म सन् 1524 में दुर्गाष्टमी पर होने के कारण ही उनका नाम दुर्गावती रखा गया। नाम के अनुरूप ही अपने तेज, साहस,शौर्य और सुंदरता के कारण इनकी प्रसिद्धि सब ओर फैल गई। महारानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की एकमात्र संतान थीं। दुर्गावती को बचपन से ही तीरंदाजी, तलवारबाजी का बहुत शौक था। इन्हें वीरतापूर्ण और साहस से भरी कहानी सुनने और पढ़ने का भी बहुत शौक था। रानी ने बचपन में घुड़सव भी सीखी थी। रानी अपने पिता के साथ ज्यादा वक्त गुजारती थी, अपने पिता से राज्य के कार्य भी सीख लिए थे,और बाद में वे अपने पिता का उनके काम में हाथ भी बटाती थी । उनके पिता को भी अपनी पुत्री पर गर्व था क्योंकि रानी सर्वगुण सम्पन्न, सौन्दर्य एवं शौर्य की अद्भुत मिसाल थीं। इस तरह उनका शुरूआती जीवन बहुत प्रेरणादायी था।

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