Dsandesh: सुप्रीम कोर्ट के नोटबंदी के फैसले को सही ठहराने के निहितार्थ

दिल्ली। देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले को सह ठहराया है। मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले के लगभग छः वर्ष बाद यह ऐतिहासिक फैसला आया। मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले के खिलाफ देश के सभी विपक्षी दलों ने इस फैसले का जोरदार विरोध दर्ज किया था। 
केंद्र सरकार के उक्त फैसले के खिलाफ धरना, प्रदर्शन  हुए थे । लेकिन केंद्र सरकार अपने फैसले से टस से मस तक नहीं हुई बल्कि अपने फैसले पर अड़ी रही थी। नोटबंदी के कारण देश को काफी परेशानियों का सामना भी करना पड़ा था। केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले पर देशभर में तरह-तरह की  अफवाहें फैलाई गई थी । विपक्षी दलों ने इस फैसले को असंवैधानिक तक कह डाला था। ‌ केंद्र सरकार के नोटबंदी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में रिट दायर कर दिया गया था। 
सुप्रीम कोर्ट ने नोटबंदी के फैसले पर केंद्र सरकार से रिपोर्ट की भी  मांग की थी। केंद्र सरकार ने नोटबंदी के फैसले से संबंधित तमाम तरह के दस्तावेज सुप्रीम कोर्ट को उपलब्ध करा दिया था। किंतु इस फैसले को आने में लगभग छः वर्ष लग गए। अब सवाल यह उठता है कि अगर केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले के विरुद्ध  सुप्रीम कोर्ट का फैसला आता तब केंद्र सरकार के विरुद्ध क्या कार्रवाई होती चूंकि सुप्रीम कोर्ट का केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले के पक्ष में फैसला आया है।
 तब यह फैसला केंद्र सरकार के लिए बड़ी राहत की बात है।केंद्र सरकार ने 2016 में 8 नवंबर को ऐलान किया था कि 500 और 1000 रुपये के नोट बंद किए जा रहे हैं। केंद्र सरकार के इस ऐलान के बाद देश में सनसनी फैल गई थी।  बैंकों के बाहर भारी भीड़ लग गई थी।  नोट बदलने वालों की लंबी लाइनें देखकर लगता था कि देश में मानो आर्थिक इमरजेंसी लग गई हो। देश के प्रधानमंत्री की मां से लेकर आम आदमी तक नोट बदलने के लिए बैंक के बाहर लाइन में खड़े नजर आए थे। 1000 और 500 रुपए के नोट के अदला बदली के मामले कई लोगों के पास से करोड़ों रुपए नाजायज पकड़े गए थे। 
 नव वर्ष के दूसरे दिन  सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मोदी सरकार का नोटबंदी का फैसला वैलिड है। सुप्रीम कोर्ट ने  4 -1 के बहुमत से यह फैसला दिया। जस्टिस बी. वी. नागरत्न ने अल्पमत के फैसले में कहा कि 'सरकारी कानून बनाकर नोट बंद किए जा सकते थे, लेकिन नोटिफिकेशन के जरिए नोट रद्द नहीं किए जा सकते थे।' सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस. ए.नजीर की अगुवाई में चार बनाम एक के फैसले में कहा गया कि इस मामले में आरबीआई और सरकार के बीच विचार-विमर्श के बाद यह फैसला लिया गया। बहुमत के फैसले में यह भी कहा गया कि केंद्र सरकार ने नोटबंदी के लिए 8 नवंबर 2016 को जो नोटिफिकेशन जारी किया था, वह वैलिड है और आनुपातिक टेस्ट को संतुष्ट करता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह पाया कि केंद्र सरकार ने नोटबंदी से पूर्व आरबीआई के गवर्नर से नोटबंदी पर गंभीरता से विचार विमर्श किया था । उसके पश्चात ही एक नोटिफिकेशन के बाद नोटबंदी की घोषणा की गई थी। केंद्र सरकार का यह कदम कानून सम्मत पाया गया । 
केंद्र सरकार ने नोटबंदी की घोषणा विधि सम्मत ही किया । नोटबंदी के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने बहुत ही गंभीरता के साथ जांच पड़ताल किया। यह सर्वविदित है कि मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले के पूर्व भी देश की आजादी के बाद केंद्र की कई सरकारों ने समय-समय पर कुछ - कुछ नोटों पर नोटबंदी की घोषणा करती रही थी, जबकि उक्त सरकारों के नोटबंदी की घोषणा के  विरुद्ध कोई रीट देश के किसी भी न्यायालय में नहीं दायर नहीं किया गया था।
नोटबंदी के खिलाफ दाखिला याचिका पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 7 दिसंबर 2022 को फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच में जस्टिस एस. ए. नजीर, जस्टिस बी. आर.गवई, जस्टिस ए. एस. बोपन्ना, जस्टिस रामा सुब्रह्मण्यम और जस्टिस बी.वी नागरत्ना शामिल रहें।
केंद्र सरकार के नोटबंदी के खिलाफ फैसले पर जस्टिस नागरत्ना ने बहुमत से अलग मत दिया। जस्टिस नजीर सहित चार जजों ने एक मत से सरकार के फैसले को वैलिड करार देते हुए फैसले के खिलाफ दाखिल याचिका खारिज कर दी। बहुमत का फैस्ला जस्टिस गवई ने पढ़ा। बहुमत के फैसले में कहा गया कि नोटबंदी ब्लैक मार्केटिंग और टेरर फंडिंग आदि को रोकने के लिए प्रयास था, लेकिन यहां इस बात का कोई मतलब नहीं है कि वह उद्देश्य पूरा हो पाया या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नोट बदले जाने के लिए 52 दिनों का जो समय दिया गया था, वह भी गैरवाजिब नहीं कहा जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नोटबंदी के मामले में जो फैसला लिया गया था, वह सिर्फ इसलिए गलत नहीं कहा जा सकता है कि यह केंद्र सरकार की ओर से लिया गया। विचारणीय पक्ष यह है कि लंबे समय से 1000 और ₹500 के नोट के माध्यम से देश में ब्लैक मार्केटिंग और टेरर फंडिंग सो रहे थे।   पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान और चीन के माध्यम से नकली नोट धड़ल्ले से भारत आ रहे थे । जिसका नुकसान भारत सरकार सहित चली जा रही थी।  ऐसी कई बातें है, जिस पर पक्ष और विपक्ष दोनों को विचार करना चाहिए था । अगर देश ब्लैक मार्केटिंग और टेरर फंडिंग, नकली नोट के शिकंजे में फंस जाता है, तब देश आर्थिक कंगाली की ओर बढ़ जाएगा। यह किसी भी मायने में देश हित में नहीं होगा। इन बातों को सरकार सार्वजनिक मंचों से कह भी नहीं सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि आर्थिक मामले में जो नीतिगत फैसला है, उसमें दखल नहीं दिया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा किघझोणंू आरबीआई एक्ट की धारा 26 (2) के तहत केंद्र सरकार को यह अधिकार है कि वह बैंक नोट की किसी भी सीरीज को रद्द कर सकती है और इसके तहत सरकार पूरी करंसी सीरीज को भी बंद कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले के अधिकार पर बहुत ही गंभीरता के साथ विचार विमर्श किया है।
जस्टिस नागरत्ना ने बहुमत से अलग मत व्यक्त किया। जस्टिस नागरत्ना ने आरबीआई की धारा - 26 (2) के तहत केंद्र सरकार के अधिकार के मुद्दे पर अलग राय दी। उन्होंने कहा कि 500 और 1000 रुपये के नोट कानून बनाकर रद्द किए जा सकते थे, लेकिन किसी नोटिफिकेशन के आधार पर रद्द नहीं किए जा सकते थे। जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि संसद को नोटबंदी मामले में कानून पर चर्चा करनी चाहिए थी। यह फैसला गजट नोटिफिकेशन के जरिए नहीं हो सकता था। जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि यह अहम मसला था और संसद को इस मामले में फैसले से अलग नहीं रखा जा सकता था। सुप्रीम कोर्ट ने उक्त न्यायधीश की राय को भी बहुत ही सम्मान के साथ अपने फैसले में दर्ज किया है,जिन्होंने नोटबंदी के फैसले को सही नहीं कहा।
केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। नोटबंदी के बाद कई मामले देशभर की अदालतों में आ गए थे। तब सुप्रीम कोर्ट ने देशभर की अदालतों में पेंडिंग तमाम ऐसे मामलों की सुनवाई पर रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने मामले को 16 दिसंबर 2016 को संवैधानिक बेंच को रेफर कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस टी एस ठाकुर की बेंच ने 9 सवाल तैयार किए थे, जिन्हें पांच जजों की बेंच के सामने सुनवाई के लिए भेजा गया था। नोटबंदी से जुड़े किन 9 सवालों को संवैधानिक बेंच के पास भेजा गया था। ये नौ  सवाल निम्न है। क्या नोटबंदी का 8 नवंबर का नोटिफिकेशन और उसके बाद का नोटिफिकेशन असंवैधानिक है? क्या नोटबंदी संविधान के अनुच्छेद-300 (ए ) यानी संपत्ति के अधिकार का उल्लंघन है?नोटबंदी का फैसला क्या आरबीआई की धारा-26 (2) के तहत अधिकार से बाहर का फैसला है? क्या नोटबंदी मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है? मसलन, संविधान के अनुच्छेद-14 यानी समानता के अधिकार और अनुच्छेद-19 यानी आजादी के अधिकारों का उल्लंघन है? क्या नोटबंदी के फैसले को बिना तैयारी के लागू किया गया? क्या करंसी का इंतजाम नहीं था और कैश लोगों तक पहुंचाने का इंतजाम नहीं था? क्या सरकार की इकनॉमिक पॉलिसी के खिलाफ अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट दखल दे सकता है? बैंकों और एटीएम में पैसा निकासी की लिमिट तय करना क्या लोगों के अधिकारों का उल्लंघन है? क्या डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव बैंकों में पुराने नोट जमा करने और नए नोट निकालने पर रोक सही नहीं है?
इन तमाम कानून सम्मत , संवैधानिक उठते प्रश्नों पर गहन छानबीन  अथवा पूरी तरह संतुष्ट होने के बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले को सही ठहराया है । नोटबंदी की घोषणा के बाद विपक्ष ने नोटबंदी के बहाने केंद्र सरकार को कटघरे में लाने की बड़ी कोशिश की थी । लेकिन मोदी सरकार ने समय रहते नोटबंदी की योजना को सफल कर दिखाया।  देशवासियों को परेशानी जरूर हुई थी। लेकिन केंद्र सरकार पूरी मुस्तैदी के साथ नोटों को समय पर भारतीय बाजार में उपलब्ध कराई थी। यह केंद्र सरकार की एक बड़ी सफलता के रूप में देखी जा सकती है।  अब चूंकि सुप्रीम कोर्ट का नोटबंदी के फैसले के पक्ष में फैसला आ गया है।  यह भारत सरकार के लिए राहत देने वाली बात है ।

विजय केसरी,
( कथाकार / स्तंभकार)

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